रोजगार Vs हिन्दी
पुनीत कुमार
नमस्कार दोस्तों, कैसे हो ? अरे.......... मैं आपसे आपका हाल-चाल पूछ रहा हूँ। लेकिन मैं तो आपको जानता भी नहीं, कौन हो आप ? किधर रहते हो ? आपकी बोली कौन सी हैं ? कोई आपकी राष्ट्र भाषा है भी या नहीं ?
घबराइए मत दोस्तों, यह सवाल मैं आपसे नहीं पूछ रहा हूँ, यह सवाल तो वह शख्स़ आपसे पूछ रहा हैं जो सन् 2025 के पार खड़ा हैं और आपकी इस हालत को देखकर उसने यह सवाल आपसे किए हैं। और यकिन मानिए, अगर आपके पास आज इन सवालों का जवाब नहीं होगा तो उस समय भी नहीं होगा, जब आपसे यह सवाल पूछें जाएंगे।
अब आप समझ ही गयें होंगे कि मैं आपको किस तरफ़ ले जाना चाहता हूँ। दोस्तों आज हर देश तरक्की पाने के लिए अपनी भाषा को आगे ला रहा हैं। और विदेशी भाषा को ज्ञान के तौर पर रख कर, बाकी सब जगह से नकार रहा है। वह अपनी सभ्यता को दुनिया के हर कोने में ले जाना चाहतें हैं। और ऐसा तभी होगा जब वह अपनी भाषा का विस्तार दुनिया को समझाने में बढाए और उन्हे अपनी भाषा सिखलाए। लेकिन हमारे भारत में, दिखने में सिधी गंगा, उल्टी बह रही है। क्योंकि आज भारत में, चाहे हिन्दी को आगे लाने के लिए कितने ही कदम उठाए जा रहें हो पर सच्चाई तो यह है कि अंग्रेजी के बिना हमारे देश में कोई काम होता ही नहीं। चाहे वह स्कूल, कॉलेज हो या कोई भी रोजगार का क्षेत्र। आज रोजगार पाने के लिए आपकी योग्यता को नहीं देखा जाता, देखा जाता तो बस आपको अंग्रेजी बोलनी आनी चाहिए, इसके बदले में अगर आपको अंग्रेजी पढनी या लिखनी भी न आती हो, तो भी चलेगा। इंसान की परख़ आज उसकी योग्यता और ज्ञान को देखकर नहीं, ब्लकि उसकी अंग्रेजी देखकर की जा रही हैं। अगर कोई अंग्रेजी में बात कर रहा है तो वह पढा-लिखा है अन्यथा वह अनपढ़ समझा जाता है। और सबसे बढ़ी विडम्बना तो यह है कि आखिर हम यह अंग्रेजी बोलकर किसे सुना रहें है, अपने भारतीयो को ? भले ही अंग्रेजो ने हमें आजाद कर दिया हो, लेकिन अपनी गुलामी की जंजीरो की छाप वह आज भी अपनी भाषा के रुप में हमारे पांवो में डाल गये है। जहां हमें कम से कम, अपने देश में तो अपनी भाषा को आगे लाना चाहिए, वहीं हम अंग्रेजी भाषा को प्रयोग करके अपना फैशन स्टेट्स दिखाने में लगे रहते है और हिन्दी भाषा को पिछढ़े समय की पिछढ़ी भाषा मानकर कहीं न कहीं नकारते रहते हैं। और हद तो उन क्षैत्रो में देखी जाती है जहां सारा काम हिन्दी के माघ्यम से होता है और वहां काम करने वाले भी भारतीय ही है, लेकिन साक्षात्कार के समय आपको अंग्रेजी आनी जरूर चाहिए, क्योंकि उन बेचारों को लगता है कि भारतीयों को अब हिन्दी बोलना ही पसन्द नहीं है और भाई उन्हें भी तो फैश़न के साथ चलना है न।
किसी भाषा को अगर हम ज्ञान के तौर पर सीख रहें है तो यह अच्छी बात है लेकिन दुख की बात तो यह है कि हमें अपने ही देश में, अपने ही भारतीयों के सामने पेट की भूख मिटाने के लिए, अंग्रेजी में रोजगार मांगना पङ रहा हैं। और हमें न चाहते हुए भी अंग्रेजी पर निर्भर रहना पङता हैं।
और तो और हमारें देश के निचलें राज्यों का तो हिन्दी को लेकर बहुत ही बुरा हाल है, खासकर तमिलनाङु में तो सन् 1996 से लेकर अब तक सरकारी तौर पर हिन्दी पर प्रतिबंध लगाया हुआ है और तमिल व अंग्रेजी को सरकारी तौर पर मान्यता प्रदान की गई है। अगर यहां पर सिर्फ उनकी मातृभाषा का सवाल होता तो ठीक था लेकिन वह हमारी राष्ट्रभाषा को त्याग कर किसी विदेशी भाषा को अपना रहें है। यह बङी दुख की बात है। क्योंकि जब हमारे ही देश में, हमारी ही राष्ट्रभाषा की इज्जत नहीं है तो विदेशों में इसके विस्तार की क्या उम्मीद की जा सकती है।
इन बातों को सोच-सोच कर मुझे एक महान महात्मा की बात रह-रह कर याद आ रहीं है कि वह सपना कब पूरा होगा जब भारत के हर इंसान की रोजी-रोटी हिन्दी-माध्यम के द्धारा ही चल निकलेगीं।
तो चलो दोस्तों, अब मैं चलता हूँ.............अरे.............अरे............वोह भूला........एक बात तो मैं कहना ही भूल गया, आप यह सोच रहे होगें कि यह लेखक इस लेख में तो हिन्दी की बात कर रहा है लेकिन इसने अपने शिर्षक में अंग्रेजी(vs.) शब्द का प्रयोग किया हुआ है। तो दोस्तों आज सच्चाई यह हैं कि रोजगार और हिन्दी के बिच़ में अंग्रेजी आ गई है। नमस्कार........................