Tuesday, February 22, 2011

शब्दों में क्या रखा है यारों !/ पुनित कुमार




शब्दों में क्या रखा है यारों !

      जी हां दोस्तों, ज्यादातर लोगों का मानना हैं कि इंसान की परख़ उसके कपड़ो से, उसके चेहरे से, उसकी चाल से व उसके व्यवहार से की जाती है, इंसान के सही व गलत होने का ढंग यह लोग इन्ही चीजों को देखकर करते है। और यह वह लोग है जो यह मानते है कि इंसान की दृश्य चीजों में ही इंसान की फ़ितरत बसी है और इंसान की अदृश्य चीजें जैसे कि मुँह से निकलने वाले शब्दों में आखिर कुछ नहीं रखा है। जो कुछ रखा है वह है, इंसान के हाव-भाव व उसकी नज़र में। क्योंकि इंसान के हाव-भाव व नज़र उसकी बहुत सी ऐसी चीजें कह डालती है जिन्हें मुँह से निकालने में बहुत से लोगों को परेशानी होती हैं। और इनमें सबसे ज्यादा इंसान वह प्रेमी युगल है जो बिना बोले अपनी आँखो से एक-दूसरे से बहुत सी बातें बोल जाते है।
         
       लेकिन इन बिना बोले शब्दों को सुनकर मेरा मतलब देखकर, नहीं सुनकर, नहीं देखकर............छोड़ो न यार शब्दों में क्या रखा है। तो क्या कह रहा था में.........हाँ, इन बिना बोले शब्दों को सुनकर-देखकर हम कई बार गलतफेमी का शिकार हो जाते है। जैसे कि सामने वाला हमें जान-पहचान की नज़रों से देख रहा होता है, लेकिन हम उसका गलत मतलब ले जाते है।
          यह तो रहीं बिना बोले शब्दों की बात, लेकिन मुँह से निकलने वाले शब्दों की भी अपनी ही कुछ अलग परेशानियाँ है। अगर इन शब्दों को हम तोल-मोल कर न बोले तो बात का मतलब़ कुछ का कुछ निकल जाता है। इस बात को एक खुबसूरत उदाहरण के साथ समझाता हूँ। एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरिका की एक जनसभा में ईश्वर की महिमा के बारे में लोगों को बता रहें थे। और शब्दों की महत्तवता की बात छेड़ते ही एक व्यक्ति ने अपने विचार प्रकट किए की आखिर गुरु जी, इन शब्दों में क्या रखा है? इसलिए आप यहाँ पर कुछ भी बोल सकते हो जब विवेकानंद की बारी आई तो उन्होनें उस व्यक्ति की तरफ़ इशारा करते कहा कि आप मूर्ख है, अनपढ़ है, नासमझ हैयह सब सुनते ही वह व्यक्ति गुस्से में आ गया और बोला आप जैसे महापुरुष की वाणि ऐसी होगी मैनें कभी सोचा न था, आपके इन शब्दों से मुझे बहुत दुख़ पहुँचा हैं। इस पर विवेकानंद ने कहा कि, न ही मैनें आपको गाली दी है और न ही मैनें आपको पत्थर मारे, मैनें तो बस शब्दों के वाण ही फ़ैके है। अरे अभी-अभी तो आपने कहा था कि आखिर इन शब्दों में रखा क्या हैअब विवेकानंद ने बड़े शांत स्वभाव से कहा कि जिस शब्द से कोई आहत हो जाए, ऐसे शब्दों को बोलने से पहले हमें यह सोच लेना चाहिए कि इसका परिणाम क्या होगा? रहीम ने भी कहा है कि, जिंह्आ जब बोलती है तो यह आकाश-पाताल नहीं सोचती, सच तो यह है कि कुछ भी बोल जाती है हमारी यह जिंह्आ
               

        दरअसल, एक कटु सच यह भी है कि हम जैसा सोचते है, हमारा व्यवहार भी वैसा ही होता चला जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि आप अपने जेहन में यह बात बैठा लें कि आप में योग्यता नहीं है व आप कभी भी क्रिएटिव नहीं बन सकते है, तो भविष्य में इसकी पूरी सभांवना है कि आप में कभी भी योगयता न आए व आप कभी भी क्रिएटिव न बन पाए। दूसरी तरफ, अगर आप खुद को लगातार यह कहते व समझाते रहें कि आप योग्य है व आप क्रिएटिवहै तो एक न एक दिन इसकी पूरी संभावना है कि आप में क्रिएटिवीटीयोग्यता जरुर आ जाएगी। याद रखें, यदि आप अपना आकलन हारे हुए खिलाड़ी के रुप में करेंगे तो, ऐसी स्थिति में आपकी सोच एक हारे हुए खिलाड़ी की तरह ही हो जाएगी और फिर इसी की बदौलत आपका व्यक्तित्व भी आगे बढ़ेगा। दरअसल हम उन्हीं बातों में ज्यादा विश्वास करते है, जिन्हें हम बार-बार दोहराते रहते हैं। यदि आप अपने बारे में पॉजिटिव बातें करते है तो यही बातें आपको धीरे-धीरे सकारात्मक विचारों वाला व्यक्ति बना देते है। अब यदि आप दिन भर नकारात्मक बातें करते रहेंगे तो वही बातें आपको नकारात्मक विचारो वाला व्यक्ति बनने पर मजबूर कर देंगी। यही कारण है कि हमें सकारात्मक व नकारात्मक शब्दरुपी हथियारों का इस्तेमाल बड़े सोच-समझकर करना चाहिए। दोस्तों अगर आप हर रोज नकारात्मक अर्थ वाले शब्दों को प्रयोग करते है तो आज से ही सकारात्मक शब्दों का इस्तेमाल करना शुरु कर दें। फ़िर यकिन किजिए दोस्तों एक न एक दिन कामयाबी आपके कद़म जरुर चूमेंगी।     
PUNEET KUMAR
             (puneettopuneet@gmail.com)


4 comments:

  1. बहुत सार्थक पोस्ट । धन्यवाद।

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  2. शब्दों के महत्व का सार्थक विवेचन ..... अच्छी पोस्ट

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  3. बहुत ही अच्छी पोस्ट ....
    आज पहली बार आप के ब्लॉग पर आया हूँ आकर बहुत अच्छा लगा .
    कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपनी एक नज़र डालें
    कृपया फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये

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  4. बहुत सार्थक पोस्ट । धन्यवाद।

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