मिल गया :- भिषावृति का उपाय/पुनित कुमार
नमस्कार दोस्तों, कैसे हो आप, सब घर में ठीक-ठाक, काम काज़ कैसा चल रहा हैं, मज़ा में? चलो मैं तो, यहीं दुआ मांग रहा हूँ कि आप ऐसे ही फ़ले-फूलें और आपके घर में वह हर समान हो, जो एक समृद्ध जीवन जीने के लिए एक इंसान को चाहिए होता हैं।
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जब हम तरक्की करते हुए एक मुकाम पर पहुँच जाते है तो हम उन लोगों की कितनी मदद करते हैं, जो बेचारे पूरे दिन मेहनत करने के बाद भी, अपने लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी नहीं कर पाते हैं।
नहीं समझे, चिंता मत किजिए घीरे-घीरे सब समझ में आ जाएगा कि मैं क्या कहना चाहता हूँ।
एक दिन मैनें एक मॉल में देखा कि, एक लम्बी सी कार में एक सज्जन सूट-पैंट पहन कर निकलता है। सर्दी का दिन था और वह पूरी तरह से गर्म कपड़े पहने हुए था। वह एक रेस्टोरेंट में गया और उसने वहां सबसे मंहगे खाने का ऑर्डर दिया। यह सब वहीं मॉल के बाहर एक कोने में बैठा गरीब भीखारी देख रहा था। जिसके पास बदन ढकने के लिए सिर्फ एक घोती थी। उसकी आँखे ऐसे घसी हुई थी कि मानो की वह अंदर की तरफ़ देख रहा हो, दोनो गाल एक दूसरे से मिलने के लिए सिर्फ कुछ फ़ासले पर थे। उसके बदन की खाल, पानी और खाना न मिल पाने को कारण ऐसी सिकुड़ गई थी, जैसे कोई सुखी किशमिश हो। वह उस सज्जन को खाते हुए, बड़ी भूखी और प्यासी निगाहों से देख रहा था। अचानक उस सज्जन की नज़र उस भिखारी पर पड़ी और सज्जन ने उस भिखारी से ऐसे मुँह फेर लिया, जैसे वह उसका कोई जानी-दुश्मन हो। थोड़ी देर में जब उस सज्जन का मन भर गया तो उसने वह बचा हुआ खाना कूड़े के ढ़ेर में फेंक दिया और वह अपनी लम्बी कार में चल दिया। उसके जाने के बाद, जल्दी से उस भिखारी ने कूड़े के डिब्बे से वह खाना निकाला और खा लिया।
तब मेरी समझ में आया कि ‘भूख’ इंसान को खाने की इज्ज़त करना कैसे सिखा देती है। असल में हमें कभी असली भूख का एहसास होता ही नहीं क्योंकी हमें थोडी सी भी भूख लगते ही हमारे पास खाना आ जाता है। ठण्ड लगते ही, हमें गर्म कपड़े मिल जाते है। बरसात या घूप होते ही, हमारे पास सर छुपाने के लिए घर होता हैं। लेकिन उन गरीब और निर्घनो का क्या, जो सड़क पर रहने के लिए मजबूर है और जो न चाहते हुए भी आगे चल कर भिखारी बन जाते हैं।
आपने देखा होगा की पूरे भारत में खासकर दिल्ली और मुम्बई में भिखारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। राज्य सरकार इन भिखारीयों को कम करने की जगह आपस में लड़ रही है कि ये आपके राज्य के है, हमारे के नहीं। हम सब चाहते है कि हमारे देश से भिखारी कम हो जाए और इन्हे हमारे जैसा रहन-सहन मिलें। और इस भिषावृती का हल निकलें।
जब इस समस्या का हल बड़े-बड़े ज्ञानी नहीं दे पाए तो, हारकर मैंने एक भिखारी से ही इसका समाघान पूछ लिया और कहा :- “आखिर भाई तुम चाहते क्या हो, तुम्हारे लिए इतना करने के बाद भी तुम बढ़ते क्यो जा रहें हो”?
तब उस भिखारी ने मंद-मंद मुस्करा के कहा :- “ अच्छा बेटा पहले यह बताओ, हमारे देश की आबादी कितनी होंगी”?
मैंने कहा:- “होगी एक अरब के आस-पास”
भिखारी :- “और इनमें घर कितने होगें”?
“होंगे करोड़ो के आस-पास”
भिखारी :- “और हमारे देश में भिखारी कितने होंगे”?
“होगें लगभग 5-6 लाख के करीब”
मैं उसकी बात समझ नहीं पा रहा था और मैंने उससे पूछ ही लिया :-“आखिर तुम कहना क्या चाहते हो”
तब वह बोला :- “बेटा अगर देश का हर इंसान अपना जीवन सादगी में बिताएं और हम गरीब-निर्घन लोगों को आपस में बाँट ले, हमें काम देदे तो। आने वाले कुछ सालों में हमारे देश में कोई भी नया भिखारी पैदा नहीं होगा, और यह भिषावृती हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी”
उसकी बात मेरी समझ में नहीं आई। मुझे लगा कि हम सब पागल है क्या, जो इन भिखारियों को आपस में बाँटगे और इन्हे काम देंगे। हम अपनी कमाई हुई दौलत को इन भिखारीयों में लूटा दे, बिल्कुल नहीं।
इन्हीं सवालों से घिर कर मैं अपने घर आ गया। मैं अपने घर इतने सालों से रह रहा हूँ, लेकिन आज मुझे अपना घर कुछ अन्जाना सा लग रहा था। मुझे अपना घर अब जरुरत से ज्यादा बड़ा लगने लगा था।
इस देश में ऐसे भी कई घर हैं, जहाँ एक-एक कमरें में दस-दस लोग रहते है और ऐसे भी कई रईसजादें है जो बड़े-बड़े कमरों में अकेलें रहते है। ऐसे भी कई लोग है, जो रोज किसी न किसी भाने से बहुत सारा खाना फ़ेकते है और ऐसे भी कई लोग है, जो दो वक्त की रोटी के लिए तरस जाते हैं और भूखे ही सो जाते हैं।
यह बात में सोच ही रहा था कि अचानक मेरे दोस्त का फोन आ गया और बातों-बातों में मैंने उसे इन बातों के बारे में भी बताया, यह सुनुने के बाद उसने मुझे बताया कि वह एक ऐसे रिक्शे वाले को जानता हैं, जिसने सड़क पर भीख माँगने वाले, 3 बच्चों को गोद ले रखा है और वह अपनी पूरे दिन की जिविका को इनके पालन-पोषण में लगा देता हैं।
यह बात सुनकर मेरी आँख खुल गई कि वह रिक्शेवाला इतना गरीब होकर भी 3 भिखारीयों का बोझ उठा सकता है, तो हम कम से कम एक भिखारी का तों बोझ उठा कर, उसे काम पर लगा ही सकते है। अब रह-रहकर मुझे उस बूढ़े भिखारी की बात याद आ रहीं थीं की “अगर हम सादगी भरा जीवन जिए और एक-एक भिखारी को आपस में बाँट कर,उन्हे काम पर लगवा देते हैं तो, जल्द ही हमारे देश से भिषावृति का नाम मिट जाएगा”
तो दोस्तों, आज से ही यह संकल्प कर लो कि सरकार के भरोसे न बैठकर, अब हम यह कदम खुद उठाएंगे और इस भिषावृति को जड़ से खत्म कर देंगें।
पुनित कुमार
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