Saturday, December 18, 2010

राष्ट्रमंडल खेल:- हम आगे जा रहे हैं या पीछे?/पुनीत कुमार


 

राष्ट्रमंडल खेल:- हम आगे जा रहे हैं या पीछे?/पुनीत कुमार



प्रणाम दोस्तों, अरे कहीं आप यह तो नहीं सोच रहें है कि इस आधुनिक युग में इसको क्या हो गया है, जो पुराने समय की तरह प्रणाम कर रहा है, लेकिन मेरी मानो तो दोस्तों आप भी जल्दी से पुरानी सभ्यता को अपना लीजिये, क्योंकि हम चाहे न चाहे हम पुराने युग में अपने आप ही चले जायेंगे
जानना चाहेंगे कैसे ?मैं आपको बताता हूँ


आजकल राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों का जोर है.भारत और दिल्ली का जैसे विकास हो रहा है, उसे देखकर तो यही लगता है कि हम बहुत विकास कर रहें है, लेकिन दरअसल विकास ऊपरी सतह का ही है,बल्कि यह विकास कम पतन ज्यादा हो रहा है|हम आगे जाने की बजाय पीछे होते जा रहे है
दिल्ली से बात शुरु करते हैं|राष्ट्रमंडल खेल के नाम पर दिल्ली में आये दिन पेड़ काटे जा रहे है और जगह -जगह मेट्रो के नाम पर सुरंगे बनाई जा रही है, उसे देखकर तो यही लगता है कि जल्दी ही दिल्ली रहने लायक नहीं रहेगीऔर जो पेड़ लगाये जा रहे है, वे सिर्फ फाइलो में ही दबकर रह जायेंगे
रिहाइशी मकानों को हटा कर फ़्लाईओवर बना दिए जायेंगे.और जल्दी ही हम इन सब के बीच अपने आप को पीछे हटता हुआ पाएँगेफिर दिल्ली पर इन नेताओ और अमीरों का राज रह जायेगा..

जिस तेजी से खाने पीने की चीजो से लेकर घर के सामान तक, और यहाँ तक की यात्रा तक महंगाई बढ़ती जा रही है|जल्दी ही ऐसा समय आएगा कि हमें घरो में ही सब्जियां उगानी पड़ेगीं और कहीं भी जाने के लिए घोड़े और साइकिल इस्तेमाल करने होंगे|जिस हिसाब से भारत के अंदर सिर्फ महंगाई बढ़ रही है, उस हिसाब से आम जनता की जेब में रुपये नहीं बढ़ रहे है

और अगर बात हम पूरे भारत की करे तो हमारे राजनेताओ ने विदेशियो के साथ,अपने मुनाफे के लिए ऐसी सांठ-गांठ कर रखी है कि अपने देश में ही हमारे माल की कोई कीमत नहीं रह गई है, हमे न चाहते हुए भी विदेशियो का माल खरीदना पड़ रहा है और यह विदेशी इससे और ज्यादा तरक्की करते जा रहे है,हम ऊपरी तौर पर तो विकास कर रहे है लेकिन, हम अंदर से खोखले होते जा रहे है.......

और यह बात समझ में नहीं आती है कि विकास के नाम पर और आजकल राष्ट्रमंडल खेल के नाम पर जो बेइंतहा पैसे खर्चे जा रहे हैं, उसका फायदा कैसे उस आम जन को मिलेगा जोकि दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में ही सारे खेलों की कलाबाजियाँ लगा रहा है अगर वह आप जनता का पेट भी न भर पाए और उनका विकास तो दूर उनके लिए सर छुपाने के भी लाले पड़ जाये.........

औरर अगर विकास का नाम बड़े-बड़े मॉल बनाकर, फ्लाईओवर बनाकर दिल्ली को पेरिस बनाना है तो इसका क्या फायदा है? वह विकास बेमायने है जो देश के केवल एक ही वर्ग को आगे बढ़ाये
यह सब देखकर तो भगत सिंह की वही बात रह-रह के याद आ रही है कि "आजादी के बाद अंग्रेज तो हमारा पीछा छोड़ देंगे, लेकिन देश के हरामखोर नेता और बड़े बड़े व्यवसायी आम इंसान का खून चूस लेंगे, गरीब और गरीब हो जायेगा और अमीर और अमीर हो जायेगा."

और देखा जाये तो आजकल हो भी यही रहा है.और इन जलेबी की तरह सीधे नेताओ की वजह से आगे होता भी यही रहेगा

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